मन्नू डरा डरा भागते हुए गौर भौजी के कक्ष में आता है और पलंग के निचे छिप जाता है
गौरा भौजी --ये क्या क्र रहे हो, आज तो तुम्हे दुल्हनिया के साथ होना चाहिए
मन्नू(हाथ जोड़ क्र )भौजी, हमको बचा लो, वो रम्भा आज ही हमारी आबरू लेना चाहती है
भौजी -हूँ, तो
मन्नू--भौजी, वो हम भूरि भैसीन का दूध एक महीना मुफत में दूंगा , आप मुझे सुहाग-रात मनाने के गुर सिखा दो
गौरा भौजी --हूँ, हमे तुम्हारी प्राब्लम कुछ कुछ समझ आ गयी है , तुम ऐसा करो, एक टुटरनी कि मदद लो
गौरा (उसे एक चुटिया वाला विग देती है, एक डंडा व् एक लोटा भी देती है
गौरा- ये लो, चुटिया पहनो, डंडा पर लोटा लटकाओ,और निकल जाओ, गंगा के किनारे
मन्नू--(प्रणाम भौजी , हम जाता हूँ,और कछु वो तुतरनी कौन है
गौरा (एक कागज देकर)ये लो उसका नाम है, अर्चना सिंह, बहुत पहुची हुयी है, वो तुमको, सुहागरात और दिन सबके हुनर सिखा देगी
मन्नू प्रणाम क्र निकल जाता है
सर पर चुटिया पहने डंडे पर लोटा लटकाये वो गंगा के तट पर धुनि रमा लेता है
एक डाकिया उसे रम्भा कि चिठ्ठी लाकर देता है
मन्नू--देखता हूँ, क्या लिखती है, कि बिना सुहागरात मनाये तो, विधवा जैसे जी रही हूँ , ये नंबर दे रही, जरा भी शर्म लाज बची हो, तो मुझे मोबिल करना
मन्नू-वह का बात है, अभी करता हूँ
मन्नू--हलो, सुनो, हम मन्नू बोल रहा हूँ,
रम्भा--तो बोलो न, रुक कहे गये , हमे तो, आपकी आवाज सुनकर ही ,कुछ कुछ होता है
मन्नू--कुछ कुछ होता है, तो देखो घर में कुछ कुछ हो, तो खुद ही कुछ कुछ क्र लो
सुनकर रम्भा मोबिल फेंक देती है
गौरा भौजी --ये क्या क्र रहे हो, आज तो तुम्हे दुल्हनिया के साथ होना चाहिए
मन्नू(हाथ जोड़ क्र )भौजी, हमको बचा लो, वो रम्भा आज ही हमारी आबरू लेना चाहती है
भौजी -हूँ, तो
मन्नू--भौजी, वो हम भूरि भैसीन का दूध एक महीना मुफत में दूंगा , आप मुझे सुहाग-रात मनाने के गुर सिखा दो
गौरा भौजी --हूँ, हमे तुम्हारी प्राब्लम कुछ कुछ समझ आ गयी है , तुम ऐसा करो, एक टुटरनी कि मदद लो
गौरा (उसे एक चुटिया वाला विग देती है, एक डंडा व् एक लोटा भी देती है
गौरा- ये लो, चुटिया पहनो, डंडा पर लोटा लटकाओ,और निकल जाओ, गंगा के किनारे
मन्नू--(प्रणाम भौजी , हम जाता हूँ,और कछु वो तुतरनी कौन है
गौरा (एक कागज देकर)ये लो उसका नाम है, अर्चना सिंह, बहुत पहुची हुयी है, वो तुमको, सुहागरात और दिन सबके हुनर सिखा देगी
मन्नू प्रणाम क्र निकल जाता है
सर पर चुटिया पहने डंडे पर लोटा लटकाये वो गंगा के तट पर धुनि रमा लेता है
एक डाकिया उसे रम्भा कि चिठ्ठी लाकर देता है
मन्नू--देखता हूँ, क्या लिखती है, कि बिना सुहागरात मनाये तो, विधवा जैसे जी रही हूँ , ये नंबर दे रही, जरा भी शर्म लाज बची हो, तो मुझे मोबिल करना
मन्नू-वह का बात है, अभी करता हूँ
मन्नू--हलो, सुनो, हम मन्नू बोल रहा हूँ,
रम्भा--तो बोलो न, रुक कहे गये , हमे तो, आपकी आवाज सुनकर ही ,कुछ कुछ होता है
मन्नू--कुछ कुछ होता है, तो देखो घर में कुछ कुछ हो, तो खुद ही कुछ कुछ क्र लो
सुनकर रम्भा मोबिल फेंक देती है
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