Thursday 5 December 2013

मन्नू  फिर छिप जाता है 
मन्नू-कसम, भूरि भैसीन कि, हम आज अपनी इज्जत नही लुटाऊंगा 
रम्भा कि सखियाँ उसे पकड़कर एक कक्ष में ठेल देती है 
वंहा रम्भा एक सोफे पर बैठी है , सामने एक चारपाई भर है , जिसपर सिर्फ चादर बिछी है 
मन्नू--हूँ , ये क्या माजरा है , रानी जी 
रम्भा (अंगड़ाई लेकर)--मुझे क्या पता , सुहागरात तुम्हारी है कि, मेरी है 
मन्नू--देखो, ज्यादा ऐंठो मत , मई पहली बार शादी किया हूँ, मुझे क्या पता , सुहाग रात कैसे मनाते है 
रम्भा--हूँ, बात में तो दम है, तुम कोचिंग क्यूँ नही ले लेते 
सहेलियां जो परदे के पीछे छिपी है , चिढ़ाती है --सोच लो , पूरी दुनिया कहेगी, कि मन्नू जीजू नकारा रहे होंगे 
मन्नू--देखो,ज्यादा तैस मत दिलाओ,
मन्नू चारपाई के पास आकर --हूँ, मामला टेड़ा लगता है , सुहाग-रात , और ये टूटी खाट 
मन्नू(रम्भा को बाँहों  में उठाकर )--इधर आओ , रानी जी, हम अभी टेस्ट करते है 
मन्नू रम्भा को उठाकर खाटपर ज्योंही जोर से डालता है,खाट टूट जाती है 
रम्भा (चीखकर)ओ , मेरी कमर का कचूमर निकल दिया 
रम्भा कि सारी सहेलियां परदे के पीछे से निकलकर उसे बहुत मारती है 
सहेलियां -पहली रात में ही मार डाला 
मन्नू--भागो, जान बचेगी तो मना लूंगा , सुहाग-रात 
मन्नू के भागते ही सारी सखियाँ हंसती है 
लाड़ली---उठो, रम्भा रानी जी, लगा तो नही 
रम्भा-नही , ये तकिया जो, कमर में बंधा था , बच गयी 
पूजा--वरना, ये लाड़ली के तो, नेचुरल सोफा होता है, उसे नही लगता , कभी खेत में 
सभी हंसती है, लाड़ली गुस्से में चली जाती है 

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