Friday 20 November 2015

hnsa jaye akela

भेटनी के हमारी जाति के गीत भी बहुत मार्मिक थे , थे इश्लीए की अब उन्हें कोई नही गाता , जो गाती थी, वे स्त्रियां अब जीवित नही हैं , कुछ भेटोनी के गीत लिख हूँ 
हम चले माई हम चले , मोरी माई हम चले , पारुल देश 
साकार को मोंगरा मोरी माई दहे दहे 
मोरी माई दोपहरी गए ओ कुम्हलाये 
मयके  की बेटी मोरी माई दहे दहे 
ससुराल में गयी ओ कुम्हलाये 
छोटे से मुंह की माई घ्येली 
मोरी बहनी, हिल मिल, पनिया जाए 
फुटन लगी माई घ्येली 
मोरी बहनी छुटन लगे ओ साथ 
कुम्हार जुड़ाबो माई घ्येली 
मायके में जुड़ाबो साथ 
                                                          
ये गीत गाते हुए , गांव की औरतें तब रोने लगती थी 
अब, न चावल में सुगंध रही 
न ही गाँवो में वो आत्मीय स्त्रियां रही 
रिश्ते-नाते भी बिखरना लगे है 
वे सब बाल-विवाह में कैसे ससुराल आती थी 
और, कैसे जीवन करती थी कितना काम, कितनी मर्यादा 
सब निभाती थी , बातें सुनती थी, म्हणत करते जीवन गुजरता था 
जब बुआ जी की दहलीज ड्योढ़ी में  रात रात तक  गाने गाती    थी 
फिर बहुत देर तक चुप बैठकर, पीहर की याद कर अपनी आँखे पोंछ लेती थी 
वो, वक़्त बहुत जाहिं था 
वे सब सुबह से शाम तक घर, ओसारे के काम में लगी रहती थी 

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