कोई
कोई ये न सोचे कि मई पैसे वाली हूँ
दरअसल लिखने की तलब मई सबकुछ भूल जाती हूँ
ये भी कि मई कोई पैसे वाली नही
बीएस लिखने की धुन रहती हैं
पुराने दिनों को कुरेदती हूँ
जैसे कोई। ………। जाने
बुआ जी के यंहा से ही गीतों से गया , हालाँकि मई गायिका नहीं , पर सुनने की हमेशा कोशिश होती हैं
वो जो भेटनी के उनमें एक गीत सबका सरताज था, जो सभी औरतें गाती थी विवाह में तो, जैसे मिलकर गाती थी, वो बहुत अद्भुत होता था, जैसे उनकी ह्रदय की रागिनी गूंजती थी
वो गीत था , जो वे लहकते हुए गाती थी
हम पर्देशिन माई पहुनिन ओ
झूला की झुलनवाली उड़ चली ओ और झूला पढ़ा बनवान
मेरी माई ओ, हम परदेशिन मई पहुंिन ओ
(अर्थात, हम तो , परदेश जाने वाली मेहमान है, माँ
जो, तेरे घर -आँगन में खेलती और झूला झूलती थी , वो अब दूर जा रही है , ऐसा गाते हुए, औरतें तो रोती थी, साथ में दुल्हन भी अपनी बहन व् माँ के गले लगकर रोती जाती थी, इसे ही भेटनी कहते थे , आगे भी उनका जीवन कष्ट -पूर्ण होता था, कहीं सुख तो, कंही दुःख होता था )
मुझे आज भी ओ गीत गाने का मन होता है, तो मई अकेले ही इसे गुनगुनाते हुए, बीते वक़्त को याद करती हूँ )
हम पर्देशिन माई पहुंिन ओ
तेरी आँगन की खेलन वाली उड़ चली ओ, और आँगन परो बनवान , मोरी माई ओ..........
(एक और बात याद आ रही है , ये गीत जब हम सब बहनें पीहर में थी , तो, हम सबके लिए हंसी -मजाक का भी पर्याप् था, हम सब हँसते हुए इसे गाती थी ,कि कैसे सब गांव वाली इसे गाती है, खासकर , मेरी दो छोटी बहनें तो ,इसपर बहुत हंसती, और एक -दूसरे को चिड़ाहटी भी थी )
कोई ये न सोचे कि मई पैसे वाली हूँ
दरअसल लिखने की तलब मई सबकुछ भूल जाती हूँ
ये भी कि मई कोई पैसे वाली नही
बीएस लिखने की धुन रहती हैं
पुराने दिनों को कुरेदती हूँ
जैसे कोई। ………। जाने
बुआ जी के यंहा से ही गीतों से गया , हालाँकि मई गायिका नहीं , पर सुनने की हमेशा कोशिश होती हैं
वो जो भेटनी के उनमें एक गीत सबका सरताज था, जो सभी औरतें गाती थी विवाह में तो, जैसे मिलकर गाती थी, वो बहुत अद्भुत होता था, जैसे उनकी ह्रदय की रागिनी गूंजती थी
वो गीत था , जो वे लहकते हुए गाती थी
हम पर्देशिन माई पहुनिन ओ
झूला की झुलनवाली उड़ चली ओ और झूला पढ़ा बनवान
मेरी माई ओ, हम परदेशिन मई पहुंिन ओ
(अर्थात, हम तो , परदेश जाने वाली मेहमान है, माँ
जो, तेरे घर -आँगन में खेलती और झूला झूलती थी , वो अब दूर जा रही है , ऐसा गाते हुए, औरतें तो रोती थी, साथ में दुल्हन भी अपनी बहन व् माँ के गले लगकर रोती जाती थी, इसे ही भेटनी कहते थे , आगे भी उनका जीवन कष्ट -पूर्ण होता था, कहीं सुख तो, कंही दुःख होता था )
मुझे आज भी ओ गीत गाने का मन होता है, तो मई अकेले ही इसे गुनगुनाते हुए, बीते वक़्त को याद करती हूँ )
हम पर्देशिन माई पहुंिन ओ
तेरी आँगन की खेलन वाली उड़ चली ओ, और आँगन परो बनवान , मोरी माई ओ..........
(एक और बात याद आ रही है , ये गीत जब हम सब बहनें पीहर में थी , तो, हम सबके लिए हंसी -मजाक का भी पर्याप् था, हम सब हँसते हुए इसे गाती थी ,कि कैसे सब गांव वाली इसे गाती है, खासकर , मेरी दो छोटी बहनें तो ,इसपर बहुत हंसती, और एक -दूसरे को चिड़ाहटी भी थी )
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