कितना मधुर नाम है
तुम्हारा रेनू
जैसे गूंज रही हो
मन के वृन्दावन में
क्रिशन की वेनू
तुम तो, हो
स्वप्न जगत की
कमनीय कामधेनु
हर वक्त लगा रहता है
तुम्हारे हारों और
मोहल्ले भर की
बालिकाओं का हुजूम
घर गृहस्थी की
आपाधापी में खोकर भी
कब, अकेली रहती हो
तुम
तुम्हारी , घर के कामों में
अस्त-व्यस्तता में भी
निखर उठता है
तुम्हारा सुघड़ सुहाना
रूप अन्यमनस्क सा
उस पर
तुम्हारा मुस्कराता
चंद्रमुख निरखकर
दूर हो जाता है
मन का सारा दुःख
तुम्हारा रेनू
जैसे गूंज रही हो
मन के वृन्दावन में
क्रिशन की वेनू
तुम तो, हो
स्वप्न जगत की
कमनीय कामधेनु
हर वक्त लगा रहता है
तुम्हारे हारों और
मोहल्ले भर की
बालिकाओं का हुजूम
घर गृहस्थी की
आपाधापी में खोकर भी
कब, अकेली रहती हो
तुम
तुम्हारी , घर के कामों में
अस्त-व्यस्तता में भी
निखर उठता है
तुम्हारा सुघड़ सुहाना
रूप अन्यमनस्क सा
उस पर
तुम्हारा मुस्कराता
चंद्रमुख निरखकर
दूर हो जाता है
मन का सारा दुःख
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