वो शब्द
जो तुम बोलती हो
कितने मधुर होते है
कितने शाश्वत है
जैसे बज उठे हो
जल तरंग
फ़ैल रही हो , ज्यों
मदिर मदिर सुगंध
दिशाओं में ,चारों ओर
झंकृत हो उठे हो
प्राण वीणा के तार
ये कैसे शब्द है
तेरे अधरों से जैसे
झर रहे हो , कुसुम
जोगेश्वरी
(बिना साहित्यिक शब्दों के लिखी ये कविताये , बहुत शोर के बिच लिखती हूँ )
जो तुम बोलती हो
कितने मधुर होते है
कितने शाश्वत है
जैसे बज उठे हो
जल तरंग
फ़ैल रही हो , ज्यों
मदिर मदिर सुगंध
दिशाओं में ,चारों ओर
झंकृत हो उठे हो
प्राण वीणा के तार
ये कैसे शब्द है
तेरे अधरों से जैसे
झर रहे हो , कुसुम
जोगेश्वरी
(बिना साहित्यिक शब्दों के लिखी ये कविताये , बहुत शोर के बिच लिखती हूँ )
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