Friday 31 January 2014

प्रिये 
जब तुम 
गंगा कि लहरों में
जलते दीयों संग 
अपने अश्रु-सुमन अर्पित करोगी 
वंही मेरे प्यार को तुम्हारी 
सच्ची शर्धांजलि होगी 

प्रिये 
जब जब , तुम 
फूलों कि तरह 
खिलती कली सी 
मुस्कराओगी 
सच ,तभी 
मेरे तस्सवुर में आ जाओगी 


तुझे रहना हो तो रहके देख 
ये विरह भी सहके देख 
मेरी कविता , मेरे गीतों बिना 
हो सके तेरा गुजर ,एक पल भी 
तो, तू मेरे गीतों के बिना 
रहके देख 

क्यों करती हो ऐसे उपहास 
क्र दे जो दिल को उदाश 

मिस शुक्ला 
कोई भी तुझसा 
जिंदगी को नही मिला 
जिंदगी में नही मिला 
न ही किसी को देखके 
दिलका कमल ही खिला 
फिर भी तुझसे नही है 
मुझको कोई गिला 

ये मुस्कराते हुए 
नाज नखरों से 
जो , तेरे आंसू छलक आते है 
लगता है जैसे 
सागर कि सीप में 
जलते दीयों कि तरह 
pears झिलमिलाये है 

तुम ही तो 
मेरे मन कि रामायण कि 
सीता हो 
मेरी कविता हो 
कोई भी पल ऐसा नही 
जो तेरे ख्यालों के बिन बिता हो 

सजनी 
सजनी 
मन रजनी 
टकोण बसंत में 
तेरा रूठके जाना 
मुझे रास आने लगा है 

जब जब तुम 
घरके आँगन में 
अपनी दहलीज पर 
साँझ के समय , आँगन में 
दीपक जलाओगी 
उसी लम्हा 
मेरे तस्वुर में 
चाँद कि तरह 
झिलमिलाओगी 

ये मतवाली 
क्या दिए जला जला के \
तेरे
तेरे गुलाबी मुखड़े कि रंगत हो गयी है काली 
तब से तू और ज्यादा 
लगने लगी है , सुघर , सलोनी 

No comments:

Post a Comment