प्रिये , तुम वंहा मिलना
जंहा निरंतर बासबत होगा
जंहा निरंतर बसंत होगा
जंहा प्रति पल फूल खिल रहे होंगे
जंहा तितलियों का स्वर्ग होगा
जंहा मधु का रस प्रवाहित हो रहा होगा
जंहा चहुँ ओर रस वृस्ति
जंहा चहुँ ओर रसवर्स्टी हो रही होगी
जंहा कोयल कुक रही होगी
जंहा कोयल कि कूक से
साइन में हुक उठती हो
जंहा हरओर बिखरा प्रकृति का उपहार हो
जंहा प्रेम का रास हो
जंहा तुम्हारे अधरों का मृदु हास हो
जंहा अमराइयों में बहार हो
जंहा आम्रमंजरी बरस रही हो
जंहा हरसिंगार खिल रहे हो
जंहा फूलों का शश्रृंगार हो
जंहा बसंत बहार हो
जंहा चमकते pears बिखर रहे हो
जंहा चौंधियाता तुम्हारा रूप व् यौवन का विलास हो
जंहा मदिर मदिर तुम्हारे अधर का हास हो
प्रेयसी ,तुम वंहा मिलना
जंहा गंगा के किनारे हो
जंहा सरिता के बहते धारे हो
जंहा रसवर्स्टी निरंतर हो
जंहा ह्रदय राग गूंजे
तुम वंहा मिलो
जंहा कोई बंधन न हो
कोई बिछोह न हो
जंहा हमेशा सांसो का रास हो
हमेशा ख्वाबों में
खिलखिलाती , मुस्कराती हुयी मिलो
और फूलों कि तरह
मन के आँगन में खिलो
जोगेश्वरी सधीर कि कविता
जंहा निरंतर बासबत होगा
जंहा निरंतर बसंत होगा
जंहा प्रति पल फूल खिल रहे होंगे
जंहा तितलियों का स्वर्ग होगा
जंहा मधु का रस प्रवाहित हो रहा होगा
जंहा चहुँ ओर रस वृस्ति
जंहा चहुँ ओर रसवर्स्टी हो रही होगी
जंहा कोयल कुक रही होगी
जंहा कोयल कि कूक से
साइन में हुक उठती हो
जंहा हरओर बिखरा प्रकृति का उपहार हो
जंहा प्रेम का रास हो
जंहा तुम्हारे अधरों का मृदु हास हो
जंहा अमराइयों में बहार हो
जंहा आम्रमंजरी बरस रही हो
जंहा हरसिंगार खिल रहे हो
जंहा फूलों का शश्रृंगार हो
जंहा बसंत बहार हो
जंहा चमकते pears बिखर रहे हो
जंहा चौंधियाता तुम्हारा रूप व् यौवन का विलास हो
जंहा मदिर मदिर तुम्हारे अधर का हास हो
प्रेयसी ,तुम वंहा मिलना
जंहा गंगा के किनारे हो
जंहा सरिता के बहते धारे हो
जंहा रसवर्स्टी निरंतर हो
जंहा ह्रदय राग गूंजे
तुम वंहा मिलो
जंहा कोई बंधन न हो
कोई बिछोह न हो
जंहा हमेशा सांसो का रास हो
हमेशा ख्वाबों में
खिलखिलाती , मुस्कराती हुयी मिलो
और फूलों कि तरह
मन के आँगन में खिलो
जोगेश्वरी सधीर कि कविता
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