कल मन उदाश रहा
मैंने लिखी चिट्ठी अपने लाकर में रख दी
और वो पत्रिकाएँ भी जो, बंधी थी
वो, खोल दी , नही भेजूंगी अब , कुछ भी
मुझे अपने को दोषी बना क्र कुछ भी करना पसंद नही
क्यों, भेजूं , नही भेजती
चिट्ठी , भी बंद रहेगी , मेरे अलमारी में
जिसे शायद कोई नही पढ़ेगा
मैंने लिखी चिट्ठी अपने लाकर में रख दी
और वो पत्रिकाएँ भी जो, बंधी थी
वो, खोल दी , नही भेजूंगी अब , कुछ भी
मुझे अपने को दोषी बना क्र कुछ भी करना पसंद नही
क्यों, भेजूं , नही भेजती
चिट्ठी , भी बंद रहेगी , मेरे अलमारी में
जिसे शायद कोई नही पढ़ेगा
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