Friday 13 September 2013

us sham ki dukhad khabar

उस दिन दीदी ने ढलती साँझ में बताई की
छाया नही रही , उसने आत्महत्या क्र ली
जीवन में तब, बीमारी से घिर कर आत्महत्या करना
बहुत ही कष्ट दायी  था , क्या बीमारी इतनी तकलीफ देती है
या, इस उम्र में दरकते रिश्ते , नही पता क्या था , सच
उसकी बेटी की शादी जुड़ गयी थी , फिर भी विवाह तक भी नही रुकी
छाया हमारे जाति की रेस्तेदारी में थी , मेरी हमउम्र
मै ११ की परीक्षा देकर उसके भाई की शादी में बुआ जी के साथ गयी थी
बेहद अल्हड उम्र का वो दौर , अपने पिता व् बुआ जी के यंहा बहुत सम्पन्नता में रहते हुए कंही डरना या
समाज में भयभीत रहना , जिसे कहते है , दबना , ये मेरे स्वभाव में तब भी नही था , अब भी नही है , जबकि हमारी कमाई ही नही रही , तब भी माकन मालकिन ने चिढकर मुझे बातें सुना दी , की तुम तो इसे रहती व् बोलती हो, जैसे माकन मालकिन तुम हो , हम नही
अरे , मई तो विनम्रता से हो बोलती हु , जाने उसे क्यों लगा , की मई किसी से डरती या दबने को तैयार नही , इसपर माकन वाली बहुत खुज गयी , क्योंकि वो तो पार्षद वगैरह के साथ मिली होती है , खैर , मई
अपने इस राजशी स्वभाव के लिए क्या करूं, की गरीबी में भी उन्हें तेजस्वी लगती हूँ
उन दिनों , जब मई छाया के भाई की शादी में गयी थी , तो उनकी भैंस बीमार थी , उसे शादी का बचा खाना देने मई छाया के संग गाँव के बहार खेत तक जाती , तो गाँव वालों के लिए ये भी बहुत मनोरंजन कारक होता था, छाया के तो कहने हो क्या , वो गाँव में सबको बताते चलती , की मई कन्हा से आई हूँ , उसी वक्त शादी में बारात के बाद जो एक खेल होता है , एक स्वांग करना होता है , वंहा सुहागिनों ने छाया को दुल्हन व् मुझे दुल्हे का वेश बनाकर एक वो क्या कहते है , मंडवे में रात्रिकालीन प्रहसन खेला।  उसमे भाँवर तक तो ठीक लगा, बाद में जब बिदाई की नौटंकी चली तो, छाया ने साडी का हाथ भर का घूँघट खिंचा व् जोरों से रोने का नाटक करने लगी, उसका ये रूप देख मई घबरा गयी, और मैंने अपनी पाग फेंकी , व् छाया के रोने की नौटंकी देखने लगी , सबके बिच मुस्कराते हुए
ये सब सबके लिए हंसी मजाक का सबब बन गया , शादी के बाद जब मई लौट आ ई तो , उसकी माँ ने खबर भेजी थी , की जागेश्वरी के हाथ के खिलाने  से उनकी भैंस ठीक हो गयी
फिर छाया की जल्द ही शादी हो गयी थी , उसे उसका फुफेरा भाई चाहता था , उसीसे ब्याह हो गया , सुखी गृहस्थी , में ये अंतिम दुःख की घड़ी , जिसकी कोई कल्पना तक नही थी
ये काउन  जानता  है, की क्या घटेगा , सच ये जीवन बहुत विचित्र है , यंहा सबकुछ संभव है
छाया की आत्मा के लिए भावभीनी श्रधांजलि  व् स्मरण -जोगेश्वरी 

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