ये पानी जैसे मन वाली
मुझे तो प्रिय है
तेरी सब गली
जैसे तू मुझे
कहती है,
खुदगर्ज
तू,क्या जाने इश्क़ का मर्ज़
पता है
कल क्या हुआ
कैफ़े से लौटते हुए
मुझे आचार्य चतुरसेन का
नावेल मिल गया
उसे मई कल ही पढ़ डाला
तेरी याद बहुत की
क्यूंकि
इन्ही, तो
तुम्हें phd का सब्जेक्ट है सच बहुत अच्छा लगा
इस तरह
तेरे विषय से जुड़कर
कि मुझे आचार्य का नावेल ही क्यों मिला रस्ते में पड़ा हुआ
मुझे तो प्रिय है
तेरी सब गली
जैसे तू मुझे
कहती है,
खुदगर्ज
तू,क्या जाने इश्क़ का मर्ज़
पता है
कल क्या हुआ
कैफ़े से लौटते हुए
मुझे आचार्य चतुरसेन का
नावेल मिल गया
उसे मई कल ही पढ़ डाला
तेरी याद बहुत की
क्यूंकि
इन्ही, तो
तुम्हें phd का सब्जेक्ट है सच बहुत अच्छा लगा
इस तरह
तेरे विषय से जुड़कर
कि मुझे आचार्य का नावेल ही क्यों मिला रस्ते में पड़ा हुआ