Sunday 3 May 2015

बहुत सरल हो तुम 
और तुम्हारी हंसी 
जैसे 
ग्रीष्म में बोगनवोलिया का खिलना 
और , खिल कर लरजना 
tum 
गुलमोहर का 
ख्वाब हो 
तुम्हारे कपोलों का स्पर्श 
जैसे 
खिलते पंखड़ी को छूना 
जैसे गंगा की उछलती लहरों को 
हाथों। ……। ये
तुम हो,
तुम i know very well u
सिर्फ तुम्हे महसूस करना 
और, तुम्हारे बारे में सोचते हुए 
दूरतक चलते चले जाना 
यूँ ही 
निरूद्देश्य जीवन में भी 
तुम्हारी वजह से 
एक 
वजह पा जाना 
ये सब, 
तुम्हारी वजह से है 
जान। ……। 
बहुत दर लगता है 
प्यार से 
आकर्षण से 
आसक्ति से 
अपने को छलने का 
तबाह करने का 
ये भी एक 
नशा है जिसे हम 
प्यार कहते है 

No comments:

Post a Comment