Sunday 31 May 2015

ये पानी जैसे मन वाली 
मुझे तो प्रिय है 
तेरी सब गली 
जैसे तू मुझे 
कहती है,
खुदगर्ज 
तू,क्या जाने इश्क़ का मर्ज़ 
पता है 
कल क्या हुआ 
कैफ़े से लौटते हुए 
मुझे आचार्य चतुरसेन का 
नावेल मिल गया 
उसे मई कल ही पढ़ डाला 
तेरी याद बहुत की 
क्यूंकि 
इन्ही, तो 
तुम्हें phd का सब्जेक्ट है सच बहुत अच्छा लगा 
इस तरह 
तेरे विषय से जुड़कर 
कि मुझे आचार्य का नावेल ही क्यों मिला रस्ते में पड़ा हुआ 

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