Wednesday 30 September 2015

लिखने का जैसे कर्म टूट गया है 
फिरसे लिखू, ये दुआ कीजिये 

Friday 25 September 2015

वे गणेश जी के दिन थे 
बुआ जी के घर  बहुत अच्छे दिन थे 
मई गणेश जी के दर्शन करने बुआ जी के यंहा से  

Friday 18 September 2015

duniya me aisa kaha sabka nasib hai..Lata_Anand Bakshi_Roshan_Devar1966....

इधर
इधर मन्नू और रम्भा का मिलना बंद हो गया 
तो , एक दिन मन्नू ने स्वप्न में रम्भा को देखा 
मन्नू ने देखा कि रम्भा श्रृंगार करते हुए दर्पण में निहार रही है 
इतनी अतीव सुंदरी प्रियतमा को यूँ देख मन्नू को नही सुझा कि क्या कहे 
किन्तु स्वप्न में ही सही , मन्नू से चुप न रहा गया 
वो, बोले ---प्रिये , ये तुम अजंता की मूरत जैसी दर्पण में निरख कर जब काजल लगती हो तो 
                      अभी वाक्य पूरा भी नही हुआ था , कि रम्भा ने वंही पेंसिल उठकर मन्नू को फेंक कर मारी 
जिससे वो, काजल लगा रही थी , वो, काजल मन्नू के , और स्वप्न अधूरा रह गया। ....... 

Vakratunda Mahakaya Shloka 108 times I Full Audio Songs Juke Box

Sawan Aayo Ma (Thumri--Raag-Desh)--Shova Gutru

Sawan Jhar Lagey Na Shubha Mudgal (Thumri, Kajri) DIGITAL STEREO AUDIO A...

आजकल वर्षा रुक कर होती है , जैसे थोड़ा सा  सुस्ताने लगते है, उनके पास देने को नही होता , मेघों का भंडार चूक जाता है , रीता रह जाता है। लेकिन पहले वे बदल बरसते थे, बरसते जाते थे , मेघ मल्हार गूंजता था, वर्षा राग और, प्रकृति की अलमस्त रागिनी से दिन रात जैसे गूंजा करते थे.
जब पावस घर की ओरनियों ,छतो, आँगन, पेड़ों, पत्तीओं , और, फुनगिों पर बरसता था, जैसे सबका मन सरसता था, एक समरसता थी जीवन में, झड़-झंखाड़ , खरपतवार , मेहँदी के हरे पत्तों को पिस्ता , मसलता , सावन रच जाता था , सबके मन और जीवन मे. गौरय्या की तेर , देर-सबीर, तिहुँकती , टिटिहरी , और मूंगे पर कौंवे की कांव कांव से गूंजता जगता, अल्सभोर. पेड़ों पर कुनमुनाते , पखेरुनों का गुनगुनाना , और बुआ जी उठकर , चूल्हा जला कर, सामने जब कुल्ला लर रही होती, तब गली में अँधेरा होता, तब बसंता एक धुंधली छाया सी,आते दिखती, सर पर, गोबर की टोकरी रखे , इसका मतलब ये नही की वे गरीब थे, बहुत जमीने होती, जायदाद थी, पर म्हणत से जीवन जीते , वो कृषक संस्कृति थि. घर आँगन से लेकर ढोलों तक अनाज भरा व् बिखरा होता।  बहुत से औरतें उसे झड़-पछोर कर रखती थी। 
किसान की बेटी -भतीजी हूँ, जब भी लिखती हूँ, खेती व् खलिहानों की जिंदगी लिखती हुँ. लिखती हूँ, की जीविका के साधन क्या थे , आज भी प्रधान मंत्री जी को लिखती हूँ, की हमारी संस्कृति कृषि की थि. हम पढ़ -लिख कर यदि कृषि-प्रबंधन करे, देश को कभी भी अनाज की कमी नही जा सकती, इन्ही, मई राष्ट्रपति जी को लिखुँगी. देश से विदेश जाने के पहले , एक बार देख तो, लो मेरे उस देश को जो ५००० वर्षों से समृद्धि का इतिहास रहा है, जन्हा मंदिरों के शिखर स्वर्णजड़ित रहे है.ese हीरे मोतियों से भरे इस देश के रमणीक तटों पर, जो संस्कृति थी, वो दलालों की नही , खेती करने वालों की थि. थी तब, आज ये चोरों व् चाटुकारों का देश कैसे हो गया , ये सोचना हगा, जन्हा ताले घरों में नही लगते थे , वो, अकर्मणयों का देश कैसे हो गया। ये कर्मठ राग आज आरक्षण राग में कैसे बदल गया।  क्या हमने वेदों को छिपकर , कंही अपनी शक्ति को तो, बंधन में नही डाला , हमें अपनी वो, ज्ञान सम्पदा को फिरसे सामने लाना होगा, और पोंगा-पंथ को मिटा कर वास्तविक ज्ञान को खोजना होगा। ऐसे आधार में विश्व-गुरु नही बन जाया करते, पहले अपनी विद्या को पता करो, कहा वह छिप गयी है, ऋषियों की ज्ञान-सम्पदा कहा बिला ग्यि…ये ये , अनुसंधान का विषय 

Thursday 17 September 2015

तुम वर्षा में भीगी 
निखरी प्रकृति हो 
और 
वो, नदी गंगा है 
तुम्हारा दर्पण 
और , तुम्हारा 
आँचल है 
उमड़ता हुआ गगन 
तुम्हारा काजल है 
एकाकी निशा का 
ynhi
इन्ही है, अरमान की 
सदियों तक निहारूं तुझे 
बनके दर्पण 
                                             
                       

Mumtaz - Upasana - Darpan ko dekha tune

Dekhti Hi Raho Aaj Darpan, Starring: Tanuja, Ulhas, Movie- Nai Umar Ki N...

Jab Jab Tu Mere Saamne Aaye - Jaspal Singh @ Shyam Tere Kitne Naam - Bha...

ये jogeshwarisadhir@yahoo.co.in
ये 
ये जो तुम दर्पण में देखकर 
आँखों में अपनी 
काजल आंजति हो,
रूपगर्विता सच तुम्हारा 
ये सादगी पूर्ण रूप 
ऐसा निखरता है 
जैसे भादो मास में 
मेघों में बिजुरी निखरती है 
तेरा भोलापन भी 
तब, लगता है तेजस्वी 
जैसे , तेरी आँखों की झिलमिल 
सपनों की बहार कहती है की, 
आज गंगा की लहरों में 
कितने दीप अरमानों के 
लहराए है 
तुम, ऐसे ही 
अपनी आँखों में 
काजल लगती रहना 
और, मई दर्पण बन 
तुम्हे निहारूं 

Wednesday 16 September 2015

Kahe Toh Se Sajna - Maine Pyar Kiya - Salman Khan, Bhagyashree - Old Hin...

GANGA MAIYA MEIN JAB TAK KE PANI RAHE - Lata Mangeshkar - SUHAAG RAAT (1...

Nadiya Chale Chale Re Dhara - Sharmila Tagore - Rajesh Khanna - Safar So...

kabhi to milegi kahin to milegi..Aarti 1962_Lata_Majrooh_Roshan..a tribute

इस साल तो, वर्ष भी कम हुई , सारे त्यौहार सूखे निकल गए , वर्ष ऐसे हुई जैसे रस्म-अदायगी हो , मन को सब समझते है 
मुझे तब की बारिश की याद आती है, ये कहूँगी, तो, सब कहेंगे , ये बात तो, पुरानी है , दरअसल , वर्ष वर्षा के माघ मेघ जब घुमड़ने लगते थे , तो तभी , बुआ जी के घर काम वालों को जो, खेती में काम करते उन्हें अड्वान्स में धान देते थे , २-३ दिन तो, धान गिनने में लगते , यूँ तो, धान का पट्टन उप्र होता था, किन्तु, जो रज्जन होता, वो धूल जिसे खकना खकाना कहते , पुरे घर भर में उड़ता था, और काम वालों की रेलमपेल लगी होती , जाने बेचारे कैसे अपने दिन बिताते थे, किन्तु, होते बहुत जीवट के थे , और, उनकी वो, म्हणत आज मुझे बहुत कुछ सहने की सकती शक्ति देती है 
आप कहते होंगे, कैसा लिख रही है, 
खैर , उन काम वालों का जीवन बहुत अभावों से भरा था, जाने कितनी कहानियां और इतिहास उनके जीवन भरे अतीत से निकलेंगे , सभी एक अलग किरदार, और, सबके चेहरे पर, निश्छल हंसी। …। 

Friday 11 September 2015

hnsa jaye akela

अपने अतीत को हम क्यों याद करते है, सबकी अपनी वजहें होगी 
मुझे लगता है, स्थि तौर पर , लिख देना , अपनों के साथ अन्याय होगा , उन्होंने जो खुद को दिए में बाटी की तरह जलाया था, तब हम आज यंहा तक पहुंचे 
मेरी बुआ ने अपने को मिटा दिया था, मेरे सुखों के लिए 
बुआ के घर की निष्कलुष शांति, तो तब थी, जब, उनका घर निविड़ एकांत था, वो, ऐसी प्रछन्न  घिरा घर, एक और तो, बेल-बड़ी से घिरा था , दूसरी और, गौओं व् बैलों के कोठे थे, बड़े आँगन पीछे थे , सबसे पीछे घुडो था, जन्हा गउओं को गोबर डाला जाता था 
वंही, एक,मूंगे का पेड़ पीछे की बाड़ी में थे,   
 बहुत साड़ी वनस्पति एक, दूसरी साइड की बाड़ी में थी , जन्हा मई जाकर कभी रीठे चुनकर, उन्हें पानी में डालकर, झाग निकालकर उसके साबुन होने का परख करती थी 
और, एक गोमची का पेड़ था , जन्हा से लाल मोती जैसे फल गिरते थे, उन्हें जमा करती थी 
और, जब सावन आता था, कितनी बारिश होती थी, तब पडोश की सहेलियां आती थी, और, सब मेंहदी के पत्ते पत्थर पर पीस कर, मेरे हाथों में रचती थी 
kintu, is बरस जब बारिश नही हुई, तो इन्ही समझ में आ रहा है, कि बिना बारिश के वो राग नही सुन सकी हु, जो की मुझे वंहा बारिश में सुनने मिलता था 
बहुत ही शांत मनोरम प्रातः और, बारिश में ओरनियों से गिरती वर्षा की बूंदों का अनवरत संगीत, सुबह जब, मूंगे मूंगें के पेड़ पर कौवा बोलता था, और आँगन में धीरोजा की पैरोडी चलती थी, सभी हँसते हँसते काम करते थे , और बुआ जी खाना बनती थी , कितना प्यारा लगता था, उनके हाथ की बनी मिश्रा  रोटियों  और घर में बनाये हुए  सोंधा स्वाद। ....... 
 छाछ   



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Vishesh: Amitabh Bachchan recites father Harivansh Rai's 'Madhushala'

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हिंदी कविता : दुष्यंत कुमार - हो गयी है पीर पर्वत सी : मनोज बाजपेयी : Du...

Wednesday 9 September 2015

शरद चन्द्रिका में 
दूब पर झरे ओंस की 
pearsजैसी चमकती 
तुम्हारी मुस्कराहट की 
झिलमिलाहट 
हमेशा दिल में 
कौंधती है 
                                           
रूप जीवा 
मई तुम्हारी समझदारी पर 
विमोहित हूँ कि 
तुम्हे इतनी समझदारी 
किस्से है 
प्रारब्ध से , प्रकृति से 
या ,तुम्हारे घरवालों से जिन्होंने 
इतनी समझ तुममे 
घुट्टी में मिलकर पिलाई है 
वक़्त बिट जाता 
वक़्त बीत जाता है 
पर, यादें नही बिट्टी 
बीतती 
वक़्त ठहरता नही 
पर, यादें ठहर जाती है 
इश्लीए 
अपने कर्तव्य हमेशा याद रखिये ताकि 
जीवन आगे चलता रहे 
भोर में 
डूब दुब 
दूब के तिनकों पर 
कनि सी 
कनी सी ओंस देखि 
देखी 
दिल किया  सहेज लूँ 
जैसे ,दिल ने 
तुम्हारी मुस्कराहट को 
सहेज 
सहेजा है 
(एक कच्ची कविता)

Tuesday 8 September 2015

 कोई भी , बहुत 

कोई भी 
बहुत मधुर प्यारा सा गीत 
तेरे जाने के बाद 
मीठा नही लगता 
                                                  
तुम होती थी तो, गीत गीत था 
                                               
जब तुम थी 
तो, गीत गीत था 
तुम थी साथ तो 
गीत गीत था 
मन में मधुरता थी 
और, एक ऊष्मा का अहसास 
आसपास था 
तुम्हारे जाने के बाद 
ये ख्याल सारी तिक्ता को धो देता है 
कि , तुम अभी भी 
कंही हो ,मुस्कराती हुई 
एक दिन उसे हक़ीक़त में देखा 
आज तक लगता है 
जैसे कोई ख्वाब है 
प्रेयशी 
कितने दिनों से सोचा है 
कि तुम्हे एक फूल देना है 
कबसे ये फूल ,हाथों में लेकर 
सोचा है कि 
इस फूल को देखकर 
तुम किस कदर 
मोहकता से मुस्कराओगी 
सच सच बताओ 
क्या इस फूल के 
मुरझाने के पूर्व 
तुम एक बार 
लौटकर नहीं आओगी 

Thursday 3 September 2015

O.P. NAYYAR'S MOHABBAT ZINDAGI HAI: "Tum Sabse Haseen Ho"

hnsa jaye akela

मुझे उस वक़्त की याद का वक़्त अब नही मिलता 
सिर्फ वे बिम्ब है, जो स्मृति में उभरते है , कौंधते है 
अतीत जो, इतना ज्यादा बेफिक्र था 
खैर , वंहा मुझे बहुत से किरदार मिले , सभी से स्नेह मिला 
वंहा , कोई मुझे नही डांटता था, न फटकारता था 
मई न तो जिद्दी थी , न ही उत्पति , उत्पत्ति उत्पाती थी ,
मुझे बुआ जी के उतने बड़े घर में अकेले खेलने की आदत हो चली थी बुआ जी की सौत , जिसे सब, छोटी कहते थे , और मेरी बुआ जी को दारुवाली बाई, अर्थात शराब के ठेके होने से ये नाम उन्हें मिला था ,
अब, जब मई थी, ठेका नही था, बुआ जी सिर्फ खेती  का काम नौकरों के भरोसे करवाती थी , अर्थात कृषि कर्म भी था, और स्वभाव भी। बहुत ही साधारण रहते थे, बहुत सम्पदा के बावजूद उथलापन नही थे, ये वे गांव के थे, या तब का ये आचरण था , कि सादा जीवन था 
बहुत शांति रहती थी, सुबह उठकर , जब पीछे के घर में जाती , तो, वंहा अजीब सा धुंवा महसूस होता, उस एकांतवासी घर की वो, अलसुबह आज भी मुझे महसूस होती है 
बुआ जी उठकर, चाय बनाती थी, मुझे दूध पिने की आदत नही थी , हमारे यंहा एक मुनीम जी भी थे 
तब, बुआ जी की सौत थी , ठीक ही था सब कुछ , वक़्त पर खेती के काम होते थे,
मई तब छोटी थी, स्कूल नही जाती थी, वंहा आँगन में एक मेहतरानी आती थी , जो मेरी धाय माँ जैसी थी , वो, मुझे देखते ही, ऐसे कोर्निश सलाम करती थी, जैसे मई राजा हूँ, मुझे इन सब बातों की आदत हो गयी थी , उसका नाम धीरोजा था, मई उसे धीरोजा बाई ही कहती थी, वो मुझे बहुत चाहती थी , जैसे सबके ममत्व का केंद्र मई हो गयी थी , सुबह उठके जब, आँगन में निकलती तो, धीरोजा का इस्नेह पूर्ण उपालम्भ व् कितनी ही बातें जो सबको हंसती सुनने मिलती थी, जैसे वो, हमारे पिछवाड़े के आँगन में कोई प्रातः प्रसारण का जिम्मा संभालती थी , सब, काम वाले उसकी बातें सुनके, हँसते थे , और सुबह हल्की फुलकी हो जाती थी 
पीछे बाड़ी में मूंगे के पेड़ पर कौआ बोलते थे , कांव कांव, जैसे उनका वक़्त होता था हम प्रकृति के संग रहते थे 
बेशक मेरा राजसी व्यवहार इन्ही से बना था, की आज भी मुझे कोई तू, कहे तो, बहुत गुस्सा भी आ जाता है , जाने क्यों 

Tum Pukar Lo Tumhara Intezar Hai KHAMOSHI 1969

Tuesday 1 September 2015

लिखते समय दोहराव का खतरा होता है 
आज तो, अंगूठे में दर्द था, मेडिसिन ले कर अब ठीक हूँ 
आगे बढ़ने के पूर्व मई अपनी बड़ी बुआ जी का शुक्रिया करूंगी , उन्ही के घर मेरा जन्म हुआ था , दरअसल मेरी दादी , जिसे हम सब आजी कहते थे, उनके पहले विवाह से मेरी दोनों बड़ी बुआ जी का जन्म हुआ था , मेरी दादी के पीटीआई महादुल्लाह नमक गांव के पटेल थे, उनके असामयिक देहांत के पश्चात मेरी दादी ने सालयी में दूसरा दूसरा विवाह किया , वे खेती-बड़ी करते थे , वंही पर उन्हें अन्य संताने हुई , लेकिन जब दूसरे पति का भी देहांत हो गया तो, वे अपने देवर के साथ विवाह कर बच्चों को पलने लगी, तब, मेरे पिता व् एक चौथी बुआ का जन्म हुआ , सभी, मेरे पिता व् अन्य बुआ, बड़े पिता वगेरह, तीन पिता की संताने, ७ या ८ थे, किन्तु सब बहुत प्रेम से मिलकर रहे, जीवन भर ये तीन पिता व् एक माँ की संतानों ने बहुत मिलकर, जिया, तभी तो, मेरी बड़ी दोनों बड़ी बुआ जो महादुल्लाह में रहते हुए ब्याही गयी थी , तब, वे मेरे पिता को अपने साथ अपने गांव ले गयी, जो, मप्र का एक गांव हिर्री है, वंही मेरे पितमेरी बड़ी बुआ के यंहा रहे व् उनकी शिक्षा व् सब काम की ट्रैनिंग हुई , मेरी दोनों बुआ एक ही घर में ब्याही थी, और, वे देवरानी-जेठानी हुई,
बड़ी बुआ हिर्री में रही , जन्हा मेरे पिता का विवाह हुआ, व् वे उन्ही के साथ रहे,जबकि छोटी बुआ, हट्टा में रति थी, छोटे फूफा ने वंही अपनी खेती , साहूकारी व् शराब के ठेके चलाये 
किन्तु, दुर्योग से उनकी एक ही संतान जो बीटा था, धनुर्वात से चल बसा , और फूफा ५ वर्ष बाद चले गए , वे जीवित न रहे 
इस तरह, छोटी बुआ , उतने बड़े घर व् जायदाद के साथ अकेले रह गयी, वंहा , उनकी सौत भी थी, जो दूसरी संतान के आशा में लाइ गयी थी, और , सब कुछ प्रारब्ध के अधीन होता है , वे दोनों अकेले रह गयी 
मेरी छोटी बुआ की सौत काफी युवा थी, बेचारी के पहले पीटीआई ने त्यागा, यंहा आई तो, विधवा हो गयी, पाट के २-३ वर्ष बाद। ....... 
खैर , मेरा इस दुर्योग से कोई वास्ता नही था, सब वंहा मुझे चाहते थे , दोनों बुआ की लड़ाई के बावजूद घर मे शांति थी , खेती के काम अपने वक़्त से होते थे ,
मेरे लिए, वो जीवन जैसे वरदान था , एक महान निष्कलुष जीवन वंहा मेरे लिए था, आज की म्हणत की उसमे कोई आभास नही होता था 
वो, बचपन था , जो हर गम से बेगाना था