तुम वर्षा में भीगी
निखरी प्रकृति हो
और
वो, नदी गंगा है
तुम्हारा दर्पण
और , तुम्हारा
आँचल है
उमड़ता हुआ गगन
तुम्हारा काजल है
एकाकी निशा का
ynhi
इन्ही है, अरमान की
सदियों तक निहारूं तुझे
बनके दर्पण
निखरी प्रकृति हो
और
वो, नदी गंगा है
तुम्हारा दर्पण
और , तुम्हारा
आँचल है
उमड़ता हुआ गगन
तुम्हारा काजल है
एकाकी निशा का
ynhi
इन्ही है, अरमान की
सदियों तक निहारूं तुझे
बनके दर्पण
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