लिखते समय दोहराव का खतरा होता है
आज तो, अंगूठे में दर्द था, मेडिसिन ले कर अब ठीक हूँ
आगे बढ़ने के पूर्व मई अपनी बड़ी बुआ जी का शुक्रिया करूंगी , उन्ही के घर मेरा जन्म हुआ था , दरअसल मेरी दादी , जिसे हम सब आजी कहते थे, उनके पहले विवाह से मेरी दोनों बड़ी बुआ जी का जन्म हुआ था , मेरी दादी के पीटीआई महादुल्लाह नमक गांव के पटेल थे, उनके असामयिक देहांत के पश्चात मेरी दादी ने सालयी में दूसरा दूसरा विवाह किया , वे खेती-बड़ी करते थे , वंही पर उन्हें अन्य संताने हुई , लेकिन जब दूसरे पति का भी देहांत हो गया तो, वे अपने देवर के साथ विवाह कर बच्चों को पलने लगी, तब, मेरे पिता व् एक चौथी बुआ का जन्म हुआ , सभी, मेरे पिता व् अन्य बुआ, बड़े पिता वगेरह, तीन पिता की संताने, ७ या ८ थे, किन्तु सब बहुत प्रेम से मिलकर रहे, जीवन भर ये तीन पिता व् एक माँ की संतानों ने बहुत मिलकर, जिया, तभी तो, मेरी बड़ी दोनों बड़ी बुआ जो महादुल्लाह में रहते हुए ब्याही गयी थी , तब, वे मेरे पिता को अपने साथ अपने गांव ले गयी, जो, मप्र का एक गांव हिर्री है, वंही मेरे पितमेरी बड़ी बुआ के यंहा रहे व् उनकी शिक्षा व् सब काम की ट्रैनिंग हुई , मेरी दोनों बुआ एक ही घर में ब्याही थी, और, वे देवरानी-जेठानी हुई,
बड़ी बुआ हिर्री में रही , जन्हा मेरे पिता का विवाह हुआ, व् वे उन्ही के साथ रहे,जबकि छोटी बुआ, हट्टा में रति थी, छोटे फूफा ने वंही अपनी खेती , साहूकारी व् शराब के ठेके चलाये
किन्तु, दुर्योग से उनकी एक ही संतान जो बीटा था, धनुर्वात से चल बसा , और फूफा ५ वर्ष बाद चले गए , वे जीवित न रहे
इस तरह, छोटी बुआ , उतने बड़े घर व् जायदाद के साथ अकेले रह गयी, वंहा , उनकी सौत भी थी, जो दूसरी संतान के आशा में लाइ गयी थी, और , सब कुछ प्रारब्ध के अधीन होता है , वे दोनों अकेले रह गयी
मेरी छोटी बुआ की सौत काफी युवा थी, बेचारी के पहले पीटीआई ने त्यागा, यंहा आई तो, विधवा हो गयी, पाट के २-३ वर्ष बाद। .......
खैर , मेरा इस दुर्योग से कोई वास्ता नही था, सब वंहा मुझे चाहते थे , दोनों बुआ की लड़ाई के बावजूद घर मे शांति थी , खेती के काम अपने वक़्त से होते थे ,
मेरे लिए, वो जीवन जैसे वरदान था , एक महान निष्कलुष जीवन वंहा मेरे लिए था, आज की म्हणत की उसमे कोई आभास नही होता था
वो, बचपन था , जो हर गम से बेगाना था
आज तो, अंगूठे में दर्द था, मेडिसिन ले कर अब ठीक हूँ
आगे बढ़ने के पूर्व मई अपनी बड़ी बुआ जी का शुक्रिया करूंगी , उन्ही के घर मेरा जन्म हुआ था , दरअसल मेरी दादी , जिसे हम सब आजी कहते थे, उनके पहले विवाह से मेरी दोनों बड़ी बुआ जी का जन्म हुआ था , मेरी दादी के पीटीआई महादुल्लाह नमक गांव के पटेल थे, उनके असामयिक देहांत के पश्चात मेरी दादी ने सालयी में दूसरा दूसरा विवाह किया , वे खेती-बड़ी करते थे , वंही पर उन्हें अन्य संताने हुई , लेकिन जब दूसरे पति का भी देहांत हो गया तो, वे अपने देवर के साथ विवाह कर बच्चों को पलने लगी, तब, मेरे पिता व् एक चौथी बुआ का जन्म हुआ , सभी, मेरे पिता व् अन्य बुआ, बड़े पिता वगेरह, तीन पिता की संताने, ७ या ८ थे, किन्तु सब बहुत प्रेम से मिलकर रहे, जीवन भर ये तीन पिता व् एक माँ की संतानों ने बहुत मिलकर, जिया, तभी तो, मेरी बड़ी दोनों बड़ी बुआ जो महादुल्लाह में रहते हुए ब्याही गयी थी , तब, वे मेरे पिता को अपने साथ अपने गांव ले गयी, जो, मप्र का एक गांव हिर्री है, वंही मेरे पितमेरी बड़ी बुआ के यंहा रहे व् उनकी शिक्षा व् सब काम की ट्रैनिंग हुई , मेरी दोनों बुआ एक ही घर में ब्याही थी, और, वे देवरानी-जेठानी हुई,
बड़ी बुआ हिर्री में रही , जन्हा मेरे पिता का विवाह हुआ, व् वे उन्ही के साथ रहे,जबकि छोटी बुआ, हट्टा में रति थी, छोटे फूफा ने वंही अपनी खेती , साहूकारी व् शराब के ठेके चलाये
किन्तु, दुर्योग से उनकी एक ही संतान जो बीटा था, धनुर्वात से चल बसा , और फूफा ५ वर्ष बाद चले गए , वे जीवित न रहे
इस तरह, छोटी बुआ , उतने बड़े घर व् जायदाद के साथ अकेले रह गयी, वंहा , उनकी सौत भी थी, जो दूसरी संतान के आशा में लाइ गयी थी, और , सब कुछ प्रारब्ध के अधीन होता है , वे दोनों अकेले रह गयी
मेरी छोटी बुआ की सौत काफी युवा थी, बेचारी के पहले पीटीआई ने त्यागा, यंहा आई तो, विधवा हो गयी, पाट के २-३ वर्ष बाद। .......
खैर , मेरा इस दुर्योग से कोई वास्ता नही था, सब वंहा मुझे चाहते थे , दोनों बुआ की लड़ाई के बावजूद घर मे शांति थी , खेती के काम अपने वक़्त से होते थे ,
मेरे लिए, वो जीवन जैसे वरदान था , एक महान निष्कलुष जीवन वंहा मेरे लिए था, आज की म्हणत की उसमे कोई आभास नही होता था
वो, बचपन था , जो हर गम से बेगाना था
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