ये jogeshwarisadhir@yahoo.co.in
ये
ये जो तुम दर्पण में देखकर
आँखों में अपनी
काजल आंजति हो,
रूपगर्विता सच तुम्हारा
ये सादगी पूर्ण रूप
ऐसा निखरता है
जैसे भादो मास में
मेघों में बिजुरी निखरती है
तेरा भोलापन भी
तब, लगता है तेजस्वी
जैसे , तेरी आँखों की झिलमिल
सपनों की बहार कहती है की,
आज गंगा की लहरों में
कितने दीप अरमानों के
लहराए है
तुम, ऐसे ही
अपनी आँखों में
काजल लगती रहना
और, मई दर्पण बन
तुम्हे निहारूं
ये
ये जो तुम दर्पण में देखकर
आँखों में अपनी
काजल आंजति हो,
रूपगर्विता सच तुम्हारा
ये सादगी पूर्ण रूप
ऐसा निखरता है
जैसे भादो मास में
मेघों में बिजुरी निखरती है
तेरा भोलापन भी
तब, लगता है तेजस्वी
जैसे , तेरी आँखों की झिलमिल
सपनों की बहार कहती है की,
आज गंगा की लहरों में
कितने दीप अरमानों के
लहराए है
तुम, ऐसे ही
अपनी आँखों में
काजल लगती रहना
और, मई दर्पण बन
तुम्हे निहारूं
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