अपने अतीत को हम क्यों याद करते है, सबकी अपनी वजहें होगी
मुझे लगता है, स्थि तौर पर , लिख देना , अपनों के साथ अन्याय होगा , उन्होंने जो खुद को दिए में बाटी की तरह जलाया था, तब हम आज यंहा तक पहुंचे
मेरी बुआ ने अपने को मिटा दिया था, मेरे सुखों के लिए
बुआ के घर की निष्कलुष शांति, तो तब थी, जब, उनका घर निविड़ एकांत था, वो, ऐसी प्रछन्न घिरा घर, एक और तो, बेल-बड़ी से घिरा था , दूसरी और, गौओं व् बैलों के कोठे थे, बड़े आँगन पीछे थे , सबसे पीछे घुडो था, जन्हा गउओं को गोबर डाला जाता था
वंही, एक,मूंगे का पेड़ पीछे की बाड़ी में थे,
बहुत साड़ी वनस्पति एक, दूसरी साइड की बाड़ी में थी , जन्हा मई जाकर कभी रीठे चुनकर, उन्हें पानी में डालकर, झाग निकालकर उसके साबुन होने का परख करती थी
और, एक गोमची का पेड़ था , जन्हा से लाल मोती जैसे फल गिरते थे, उन्हें जमा करती थी
और, जब सावन आता था, कितनी बारिश होती थी, तब पडोश की सहेलियां आती थी, और, सब मेंहदी के पत्ते पत्थर पर पीस कर, मेरे हाथों में रचती थी
kintu, is बरस जब बारिश नही हुई, तो इन्ही समझ में आ रहा है, कि बिना बारिश के वो राग नही सुन सकी हु, जो की मुझे वंहा बारिश में सुनने मिलता था
बहुत ही शांत मनोरम प्रातः और, बारिश में ओरनियों से गिरती वर्षा की बूंदों का अनवरत संगीत, सुबह जब, मूंगे मूंगें के पेड़ पर कौवा बोलता था, और आँगन में धीरोजा की पैरोडी चलती थी, सभी हँसते हँसते काम करते थे , और बुआ जी खाना बनती थी , कितना प्यारा लगता था, उनके हाथ की बनी मिश्रा रोटियों और घर में बनाये हुए सोंधा स्वाद। .......
छाछ
मुझे लगता है, स्थि तौर पर , लिख देना , अपनों के साथ अन्याय होगा , उन्होंने जो खुद को दिए में बाटी की तरह जलाया था, तब हम आज यंहा तक पहुंचे
मेरी बुआ ने अपने को मिटा दिया था, मेरे सुखों के लिए
बुआ के घर की निष्कलुष शांति, तो तब थी, जब, उनका घर निविड़ एकांत था, वो, ऐसी प्रछन्न घिरा घर, एक और तो, बेल-बड़ी से घिरा था , दूसरी और, गौओं व् बैलों के कोठे थे, बड़े आँगन पीछे थे , सबसे पीछे घुडो था, जन्हा गउओं को गोबर डाला जाता था
वंही, एक,मूंगे का पेड़ पीछे की बाड़ी में थे,
बहुत साड़ी वनस्पति एक, दूसरी साइड की बाड़ी में थी , जन्हा मई जाकर कभी रीठे चुनकर, उन्हें पानी में डालकर, झाग निकालकर उसके साबुन होने का परख करती थी
और, एक गोमची का पेड़ था , जन्हा से लाल मोती जैसे फल गिरते थे, उन्हें जमा करती थी
और, जब सावन आता था, कितनी बारिश होती थी, तब पडोश की सहेलियां आती थी, और, सब मेंहदी के पत्ते पत्थर पर पीस कर, मेरे हाथों में रचती थी
kintu, is बरस जब बारिश नही हुई, तो इन्ही समझ में आ रहा है, कि बिना बारिश के वो राग नही सुन सकी हु, जो की मुझे वंहा बारिश में सुनने मिलता था
बहुत ही शांत मनोरम प्रातः और, बारिश में ओरनियों से गिरती वर्षा की बूंदों का अनवरत संगीत, सुबह जब, मूंगे मूंगें के पेड़ पर कौवा बोलता था, और आँगन में धीरोजा की पैरोडी चलती थी, सभी हँसते हँसते काम करते थे , और बुआ जी खाना बनती थी , कितना प्यारा लगता था, उनके हाथ की बनी मिश्रा रोटियों और घर में बनाये हुए सोंधा स्वाद। .......
छाछ
जोगेश्वरी ,आप वर्णात्मक लेखन में बेजोड़ हैं !
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