इधर
इधर मन्नू और रम्भा का मिलना बंद हो गया
तो , एक दिन मन्नू ने स्वप्न में रम्भा को देखा
मन्नू ने देखा कि रम्भा श्रृंगार करते हुए दर्पण में निहार रही है
इतनी अतीव सुंदरी प्रियतमा को यूँ देख मन्नू को नही सुझा कि क्या कहे
किन्तु स्वप्न में ही सही , मन्नू से चुप न रहा गया
वो, बोले ---प्रिये , ये तुम अजंता की मूरत जैसी दर्पण में निरख कर जब काजल लगती हो तो
अभी वाक्य पूरा भी नही हुआ था , कि रम्भा ने वंही पेंसिल उठकर मन्नू को फेंक कर मारी
जिससे वो, काजल लगा रही थी , वो, काजल मन्नू के , और स्वप्न अधूरा रह गया। .......
इधर मन्नू और रम्भा का मिलना बंद हो गया
तो , एक दिन मन्नू ने स्वप्न में रम्भा को देखा
मन्नू ने देखा कि रम्भा श्रृंगार करते हुए दर्पण में निहार रही है
इतनी अतीव सुंदरी प्रियतमा को यूँ देख मन्नू को नही सुझा कि क्या कहे
किन्तु स्वप्न में ही सही , मन्नू से चुप न रहा गया
वो, बोले ---प्रिये , ये तुम अजंता की मूरत जैसी दर्पण में निरख कर जब काजल लगती हो तो
अभी वाक्य पूरा भी नही हुआ था , कि रम्भा ने वंही पेंसिल उठकर मन्नू को फेंक कर मारी
जिससे वो, काजल लगा रही थी , वो, काजल मन्नू के , और स्वप्न अधूरा रह गया। .......
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