Wednesday 10 February 2016

  कल मैं संघ कार्यालय गयी थी, एक वैचारिक ऊर्जा महसूस होती है 
अपनी बात जो कहना चाहती हु,, उसके लिए कोई मंच मुझे नही मिलता 
समझ में नही आता किनसे ये सब कहु 
हमारे देश में ये मंच नहीं है 
जो मंच चलते है, वे बड़े शहरों में है 
छोटे शहर में भ्रस्टाचारी अपना गिरोह चलते है जो 
राज्य सरकार की  योजनाओं में  लगाते है, उन्हें कोई रोकने वाला नहीं है 
ये चाहे जिस जाती समज समाज के हो, इनकी एकता अभूतपूर्व होती हैहै 
ये हमेशा सरकारी योजना का पैसा  खाए, ये हमेशा जानते है, और मिलकर कहते खाते है 
इनकी यूनिटी चूँकि, स्वार्थ व् मतलबपरस्ती पर होती है, ये सदैव एकजुट रहते है 
अपने शहर में देखती हूँ, जो करोड़ों की योजना है, उनका हश्र ये होता है, कि कोई भी उन्हें छू भी नही सकता, ये बड़े संगठित रूप में , अपने योजना के पैसे खाने को अंजाम दे रहे है बालाघाट में ५०० करोड़ की एक योजना मलाजखंड की है, इसका कोई प्रतिसाद नही दीखता.जो नक्सली होने से पैसा आता, उसका कोई प्रतिसाद नही दीखता.जो आयोजन होते है, उसका कोई परिणाम नही मिलता. ४० करोड़ की नल पानी की योजना है, सोचने की बात ये है, कि क्या किसी को  मतलब है 
शायद यंहा लोग कोई सारोकार  रखते, जो सामाजिक काम करे, उसे निकम्मा मानते हुए, या तो, अनदेखा करते है, या थान थान
   लोगों को जानकारी देने ई कोई मंशा नही होती 
बसें पलट जाती है, पर रस्ते ठीक नही होते मैंने अपने क्षेत्र की समस्याओं पर लगातार प्रधानमंत्री जी को लिखा, तब यंहा जो सड़कें खोदी गयी थी, उनका कोई काम होते दिख रहा, पर कबतक  पता, ४-५ किलोमीटर की १३ हजार करोड़ की योजना लचर तरीके से बन रही सड़कें, और कोई आगे आने को तैयार नही, सड़क चाहते है, तो उसके लिए आगे आईये, जो पैसा सरकार भेज रही है, उसका हिसाब क्यों नही देते , बहुत दारुण स्थिति है,
और लोकतंत्र सलीब पर टंगा है  

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