Friday 6 September 2013

700 times reading have completed

इस रचना के साथ बनारस की बयार ने बिना किसी आस के ही 700 का आंकड़ा छू लिया है
जैसे ये चंचल किशोरी जादू कर रही है
किन्तु, ये सब जमीं पर चल कर पंहुची है
उड़न नही भरी है
इस ख़ुशी के बीच बनारस की बयार , आप सभी को ये भी यद् दिलाना चाहती है , की
हमारा सामाजिक दायित्व है , सरोकार है
ये जो जुडाव आपसे हुवा है
ये, वो अलाव है, जो जिंदगी की भट्टी में सुलगा है
तब, जाकर मिला ये तमगा है
जिसे कहती हूँ, की बनारस की बयार उमगा है
बहुत म्हणत से , अहिस्ते अहिस्ते     , ये आपके दिलों में जगह बनती है

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