आज रात देखि थी
भोर के पूर्व जब
पौ फट रही थी
इतनी धुंध से
आकाश धरती का
कोना कोना अटा था
तब लगा अब मुझे
चलना होगा
वो कम करना होगा
जो अंधकार में
दिया करता है
अकेले ही तं से लड़ता है
नन्हा सा दिया
ओ पिया
कन्हा है तू
ये जो मुझ पर
बार बार इल्जाम लगती है
जानती नही
मै रात दिन म्हणत करती हूँ
मुझे आराम भी तब मिलता है
जब गहरी नींद में होती हु
वरना सपनों की रील
चलती रहती है
यदि, मेरे उम्र के दिन लौटे है
तो, ये उपर वाले का करम
चंद्रमुखी
तू क्यों मुझे एस कहती है
बता , मई सिर्फ कम करती हूँ
और कुछ नही, रे। ……
भोर के पूर्व जब
पौ फट रही थी
इतनी धुंध से
आकाश धरती का
कोना कोना अटा था
तब लगा अब मुझे
चलना होगा
वो कम करना होगा
जो अंधकार में
दिया करता है
अकेले ही तं से लड़ता है
नन्हा सा दिया
ओ पिया
कन्हा है तू
ये जो मुझ पर
बार बार इल्जाम लगती है
जानती नही
मै रात दिन म्हणत करती हूँ
मुझे आराम भी तब मिलता है
जब गहरी नींद में होती हु
वरना सपनों की रील
चलती रहती है
यदि, मेरे उम्र के दिन लौटे है
तो, ये उपर वाले का करम
चंद्रमुखी
तू क्यों मुझे एस कहती है
बता , मई सिर्फ कम करती हूँ
और कुछ नही, रे। ……
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