Wednesday 11 September 2013

koi, gambhir bat ho jaye

आज रात देखि थी
भोर के पूर्व जब
पौ फट रही थी
इतनी धुंध से
आकाश धरती का
कोना कोना अटा था
तब लगा अब मुझे
चलना होगा
वो कम करना होगा
जो अंधकार में
दिया करता है
अकेले ही तं से लड़ता है
नन्हा सा दिया
ओ पिया
कन्हा है तू
ये जो मुझ पर
बार बार इल्जाम लगती है
जानती नही
मै रात  दिन म्हणत करती हूँ
मुझे आराम भी तब मिलता है
जब गहरी नींद में होती हु
वरना सपनों की रील
चलती रहती है
यदि, मेरे उम्र के दिन लौटे है
तो, ये उपर वाले का करम
चंद्रमुखी
तू क्यों मुझे एस कहती है
बता , मई सिर्फ कम करती हूँ
और कुछ नही, रे। …… 

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