Friday 31 January 2014

यूँ न चोरी चोरी 
गंगा कि लहरों पर 
यूँ न लिखा कीजिये 
चोरी चोरी मेरा नाम 
गंगा कि चंचल लहरों पर 
कि वो जाकर ये राज 
समंदर से कह देगी 
और जब वर्षा होगी तो 
बिजली कि चमक के बिच 
मेरा नाम, बिखर जायेगा 
धरती के जर्रे जर्रे में 
बर्षाती मतवाली बूंदों के संग 

bnaras ki byar: जबसे तेरे चेहरे पर निखार आया है ये मालूम हुवा कि...

bnaras ki byar: जबसे तेरे चेहरे पर 
निखार आया है 
ये मालूम हुवा कि...
: जबसे तेरे चेहरे पर  निखार आया है  ये मालूम हुवा कि  मौसम बहार आया है  जब पेड़ों कि छाहँ  लम्बी छांव  बगिया में पढ़ रही होगी  सच तू वं...
जबसे तेरे चेहरे पर 
निखार आया है 
ये मालूम हुवा कि 
मौसम बहार आया है 

जब पेड़ों कि छाहँ 
लम्बी छांव 
बगिया में पढ़ रही होगी 
सच तू वंही कंही बैठी 
किताब पढ़ रही होगी 

ये मधुलिका 
ये 
ये मधुलिका 
कौन है जो 
तेरे नशीले नयन बनों में 
बिंधकर 
बेमोल नही बिका 

यूँ 
यूँ चोरी से 
यूँ ही चोरी चोरी से 
पानी कि लहरों पर 
न लिखा करो मेरा नाम 
कि , लहरें आकाश तक उठा करती है 
बरषत में बरसकर 
बुँदे धरती से कह देगी 
मेरा छिपा हुवा प्यार 
बिखर जायेगा , जब वर्षा में 
भीगी हवाओं संग 
प्रिये 
जब तुम 
गंगा कि लहरों में
जलते दीयों संग 
अपने अश्रु-सुमन अर्पित करोगी 
वंही मेरे प्यार को तुम्हारी 
सच्ची शर्धांजलि होगी 

प्रिये 
जब जब , तुम 
फूलों कि तरह 
खिलती कली सी 
मुस्कराओगी 
सच ,तभी 
मेरे तस्सवुर में आ जाओगी 


तुझे रहना हो तो रहके देख 
ये विरह भी सहके देख 
मेरी कविता , मेरे गीतों बिना 
हो सके तेरा गुजर ,एक पल भी 
तो, तू मेरे गीतों के बिना 
रहके देख 

क्यों करती हो ऐसे उपहास 
क्र दे जो दिल को उदाश 

मिस शुक्ला 
कोई भी तुझसा 
जिंदगी को नही मिला 
जिंदगी में नही मिला 
न ही किसी को देखके 
दिलका कमल ही खिला 
फिर भी तुझसे नही है 
मुझको कोई गिला 

ये मुस्कराते हुए 
नाज नखरों से 
जो , तेरे आंसू छलक आते है 
लगता है जैसे 
सागर कि सीप में 
जलते दीयों कि तरह 
pears झिलमिलाये है 

तुम ही तो 
मेरे मन कि रामायण कि 
सीता हो 
मेरी कविता हो 
कोई भी पल ऐसा नही 
जो तेरे ख्यालों के बिन बिता हो 

सजनी 
सजनी 
मन रजनी 
टकोण बसंत में 
तेरा रूठके जाना 
मुझे रास आने लगा है 

जब जब तुम 
घरके आँगन में 
अपनी दहलीज पर 
साँझ के समय , आँगन में 
दीपक जलाओगी 
उसी लम्हा 
मेरे तस्वुर में 
चाँद कि तरह 
झिलमिलाओगी 

ये मतवाली 
क्या दिए जला जला के \
तेरे
तेरे गुलाबी मुखड़े कि रंगत हो गयी है काली 
तब से तू और ज्यादा 
लगने लगी है , सुघर , सलोनी 

Thursday 30 January 2014

प्रिये 
जब गंगा कि लहरों में 
तुम अपने अश्रुसुमन बहाओगी 
सच, वंही मुझे 
तुम्हारी तरफसे 
सच्ची श्रद्धांजलि होगी 
ये जो अपने सौंदर्य से तू 
मचा रही है धूम 
मन करता है 
चोरीसे सबकी नज़रें बचके 
तेरा शुभ्र ललाट लू चूम 

ये इठलाती 
बलखाती 
मुस्कराती हुई 
जो, तुम सबके सामने से निकलती है 
सच, पल पल 
कितने रंग बदलती है 

bnaras ki byar: ये मेरे पहले शब्द जो सिर्फ तेरे सौंदर्य के लिए लि...

bnaras ki byar: ये मेरे पहले शब्द 
जो सिर्फ तेरे सौंदर्य के लिए लि...
: ये मेरे पहले शब्द  जो सिर्फ तेरे सौंदर्य के लिए लिखे होंगे  कल, जेन तुम कंहा , हम कंहा होंगे  तुम्हारी मदभरी हंसी  और नशीली निगाहें  ...
ये मेरे पहले शब्द 
जो सिर्फ तेरे सौंदर्य के लिए लिखे होंगे 
कल, जेन तुम कंहा , हम कंहा होंगे 

तुम्हारी मदभरी हंसी 
और नशीली निगाहें 
तुम्हारी गोरी गोरी बांहे 
फिर सिर्फ आंहे ही आहें 

ये गजगामिनी 
ये मंभामिनी 
ये मंभामिनी 
मनभामिनी 
ये जो आशिकों के दिलों को 
कदमों तले रौंदते हुए 
बांकी अदा से चलती हो 
ये तेरा सरूर 
जीना क्र देता है, जरुर 
तुझे देखके , मन कि कली खिलती है 
जब जब तू इतराके मिलती है 
इठलाके सामने से निकलती है 
तेरे हंसने मुस्कराने से ही 
बाग़ कि हर कली खिलती है 
जब तू, मुस्कराकर मिलती है दिल कि पंखुरी खिलती है 

ये जो , ताजा ताजा खिले कुसुम सा 
कोरा कोरा तेरे कपोलों का रंग है 
तेरे गुलाबी गालों पर मलराहा 
सुरभित
केशर अनंग है
तेरे माथे पर जो 
सजा निखरा सा कुमकुम है 
जैसे मंदिर में दीप दीप करता 
कोई दीपक जल रहा है 
निरखकर तेरा सजीला कुमकुम 
दिल करता है 
तेरा शुभ्र ऊँचा ललाट लू चूम 
मन करता है चोरी से सबकी निगाहें बचके। …… 

Wednesday 29 January 2014

ओह 
ओह 
ओह , जंवा-कुसुम 
कभी साथ साथ थे 
एक बार फिरसे दूर 
हम और तुम 
ओह, जंवा -कुसुम 
तुम्हारे अधरों कि लाली 
होठों कि गाली 
और माथे का बिखरा कुमकुम 
ओह , जंवा-कुसुम 
ye sur 
ये सुरपुर कि अप्सरा 
जब बजते है तेरे नुपुर 
तरंगित होता है, संसार 
क्या फर्क पड़ता है 
कि तू पास रहे , चाहे दूर 
जब सजता है तेरा गज़रा 
और नशीला तेरा कजरा 
समझ कैसे तेरे बिन 
एक एक पल होगा गुजरा 
चल
चल मन भी जा ,कामिनी कि 
मेरी कविता के बिना 
नही होता तेरा गुजर 

और सुन 
ये तेरी पायल कि रन झुन 
ह्रदय में गूंजती रहती है 

नदी के धारों को बहते देखना 
और तुझे याद करते रहना, पारो 
बहुत अच्छा लगता है पता ही नही चलता कि 
वक़त का प्रवाह कैसे गुजरा , 

तुझसे दूर रहते हुए भी 
प्रतिपल , सिर्फ तेरे ही संग 
ये
ये तेरे अधरों कि मधुर हंसी 
मीठी मधुर हंसी 
जैसे कि बजते हो जल तरंग 
ये अल्हड सजनी 
फूलों कि तरह महके 
लहके , तेरे अंग अंग 

bnaras ki byar: pryshi प्रेयशी उर्वशी प्रेयशी रूप चले जाता है ...

bnaras ki byar: pryshi 
प्रेयशी उर्वशी 
प्रेयशी 
रूप चले जाता है 
...
: pryshi  प्रेयशी उर्वशी  प्रेयशी  रूप चले जाता है  रूप कि धुप ढल जाती है  जवानी चली जाती है  सिर्फ यादें रह जाती है  जो, तुम्हारे अधर...
ओ नीली चुनर वाली 
मदमस्त निगाहों वाली 
जा दूर रहके देखले 
गर मेरे प्यार के बिन तेरा गुजर हो जाये तो 

Tuesday 28 January 2014

प्रिये 
तुम जाना भी चाहो 
तो तुम्हे जाने कौन देगा 
pryshi 
प्रेयशी उर्वशी 
प्रेयशी 
रूप चले जाता है 
रूप कि धुप ढल जाती है 
जवानी चली जाती है 
सिर्फ यादें रह जाती है 
जो, तुम्हारे अधरों कि 
मधुर हंसी कि तरह 
दिल से कभी नही जाती 

bnaras ki byar: प्रिये , तुम वंहा मिलना जंहा निरंतर बासबत होगाजं...

bnaras ki byar: प्रिये , तुम वंहा मिलना 
जंहा निरंतर बासबत होगा
जं...
: प्रिये , तुम वंहा मिलना  जंहा निरंतर बासबत होगा जंहा निरंतर बसंत होगा  जंहा प्रति पल फूल खिल रहे होंगे  जंहा तितलियों का स्वर्ग होगा  ...
प्रिये , तुम वंहा मिलना 
जंहा निरंतर बासबत होगा
जंहा निरंतर बसंत होगा 
जंहा प्रति पल फूल खिल रहे होंगे 
जंहा तितलियों का स्वर्ग होगा 
जंहा मधु का रस प्रवाहित हो रहा होगा 
जंहा चहुँ ओर रस वृस्ति 
जंहा चहुँ ओर रसवर्स्टी हो रही होगी 
जंहा कोयल कुक रही होगी 
जंहा कोयल कि कूक से 
साइन में हुक उठती हो 
जंहा हरओर बिखरा प्रकृति का उपहार हो 
जंहा प्रेम का रास हो 
जंहा तुम्हारे अधरों का मृदु हास हो 
जंहा अमराइयों में बहार हो 
जंहा आम्रमंजरी बरस रही हो 
जंहा हरसिंगार खिल रहे हो 
जंहा फूलों का शश्रृंगार हो 
जंहा बसंत बहार हो 
जंहा चमकते pears बिखर रहे हो 
जंहा चौंधियाता तुम्हारा रूप व् यौवन का विलास हो 
जंहा मदिर मदिर तुम्हारे अधर का हास हो 
प्रेयसी ,तुम वंहा मिलना 
जंहा गंगा के किनारे हो 
जंहा सरिता के बहते धारे हो 
जंहा रसवर्स्टी निरंतर हो 
जंहा ह्रदय राग गूंजे 
तुम वंहा मिलो 
जंहा कोई बंधन न हो 
कोई बिछोह न हो 
जंहा हमेशा सांसो का रास हो 
हमेशा ख्वाबों में 
खिलखिलाती , मुस्कराती हुयी मिलो 
और फूलों कि तरह 
मन के आँगन में खिलो 

जोगेश्वरी सधीर कि कविता 
तुम्हे दूर जाने कि जरुरत क्या थी 
क्यों कंही चली गयी 
कुछ नही सोचा 
एक पल को भी 
एक एक पल 
एक एक मिनट 
ये जिंदगी बिट रही है पूरी तरह से 
गुजर जाने के लिए 
नदियों के बहते रहने का 
सतत परवाह का सतत प्रवाह का 
कोई कारन नही होता 
सब यूँ ही होता है सूरज का उगना चाँद का निकलना 
और फूलों का खिलना 

न कोई बात कहने कि थी 
न कोई बात लिखनी ही थी 
सब कुछ बिना कहा ही रहा 
यंही ठीक भी है 

bnaras ki byar: जीनुजीनु जीनु जीनु जीनु वो चिट्ठी कभी नही लिख...

bnaras ki byar: जीनु
जीनु 
जीनु 
जीनु 
जीनु 
वो चिट्ठी कभी नही लिख...
: जीनु जीनु  जीनु  जीनु  जीनु  वो चिट्ठी कभी नही लिखी जा सकी  जो, तेरी याद में लिखनी थी
जीनु
जीनु 
जीनु 
जीनु 
जीनु 
वो चिट्ठी कभी नही लिखी जा सकी 
जो, तेरी याद में लिखनी थी 
हमेशा हमेशा दिल का टूटना और बिखर जाना 
यंही है , इस तबियत कि नियति 

Sunday 26 January 2014

तुम्हारे
तुम्हारे  पहले 
तेरे तेरे  पहले थी  
किन्तु  ,   

Thursday 23 January 2014

जंहा तेरा घर दर 
वंही मेरी नज़र 
पर ये तो बता कि तू है , किधर 

Wednesday 22 January 2014

तेरे आँचल में वो जो खेलता मुस्कराता है 
चंचल चपल शिशु 
सच तू उस वक़त बहुत सात्विक लगती है 
सुनतो 
तेरे आनेसे बसंत आता है 
तेरे जाने से बसंत जाता है 
ये तो बता कि 
बसंत से ये तेरा कैसा नाता है 
सब हमे चाहे इसके लिए तो 
हमे तुम्हारा जितना प्यारा होना होगा 
जो, हम नही हो सकते 
क्योंकि, तुम इतनी प्यारी कुदरत से हो 
ये कुदरत का तुम्हे प्यारा उपहार है 
तुम जो इतने सारे प्रीत के दिए जलाती है 
राहों में रंगोली सजाती है 
तो, फिर जिंदगी से एतबार क्यों न हो 
मन्नू ने लिखा 
जीनु 
तू कैसी है 
क्यों इतना याद आती है 
सोते जागते हर वक़त 
ये क्या है 
कि तेरी याद दिलो दिमाग से जाती नही 
मन्नू कि चिट्ठी
मन्नू कि
मन्नू कि चिट्ठी 
मन्नू ने लिखी चिट्ठी 
मन्नू ने लिखा 
कि 
रम्भा तुम कैसी हो 
किन्तु, इससे ज्यादा लिखने को क्या बचा 

Tuesday 21 January 2014

ईश्वर से बढ़कर 
ईश्वर से बढ़कर तो कोई नही 
किन्तु तुम भी तो कुछ हो 
जो ईश्वर के बाद हो 
इतना सहारा क्यों मिलता , वरना 
तू ये बता कि 
तुम जिंदगी में इतनी देरसे क्यों आई 
जब सब कुछ बिट रहा हो, तब 
तुझसे अच्छा कोई हो तो 
तू ही बता देना 

Monday 20 January 2014

जीनु 
तुम बहुत प्यारी चीज हो 
जीनु 
कसम तेरे प्यार कि 
तुझसे
तुझसे अच्छा तो कोई नही 

Sunday 19 January 2014

bnaras ki byar: जीनु हमे तेरी बहुत याद अति है तू कैसी है तेरा च...

bnaras ki byar: जीनु
हमे तेरी बहुत याद अति है
तू कैसी है
तेरा च...
: जीनु  हमे तेरी बहुत याद अति है  तू कैसी है  तेरा चुन्नू कैसा है  जीनु  तुम बहुत अच्छी हो  तुम्हारे जितनी अच्छी तो  न बनारस में है  ...
जीनु 
हमे तेरी बहुत याद अति है 
तू कैसी है 
तेरा चुन्नू कैसा है 
जीनु 
तुम बहुत अच्छी हो 
तुम्हारे जितनी अच्छी तो 
न बनारस में है 
न ही मुम्बई में 
गोरखपुर में क्या होगी 
सुन, अपने चुन्नू का ख्याल रखना 
वो बहुत उधमी है 
एक जगह नही रुकता 
इससे तू उसकी पिटाई मत किया क्र वो बहुत सरल है 
उसकी आँखे देख कितनी तेज है 
वो चंचल नही है 
गम्भीर है 
तेरे जितना शरारती भी नही है 
सुन, तू ठीक से है न 
तेरे घर में खुशियों कि भरें हो 
तू जंहा होगी , वंहा खुशियां तो रहेगी 
देख , काम में अपने को मत भूल जाना 
और क्या लिखूं 
तू बहुत अच्छी है 
रोज दिए या कैंडिल जलाती है 
आँगन में जलाना 
घर में चुन्नू इधर उधर करता है 
वो, तेरे हर काम को ध्यान से देखता है 
ओके , ठीक रहो 
कुछ भूल रही हो 
मुस्कराती रहना , पर किसी के सामने नही 
ठीक है, कुछ भूल रही, लिखना 

Saturday 18 January 2014

मन्नू के लव लैटर कल लिखेंगे 
आज नही 
बालम परदेशिया
बलम परदेशिया नही 
भोजपुरी फ़िल्म का टाइटल बतायी तो 
प्रोडूसर बहुत हंसा 

Sunday 5 January 2014

आज तो वक़त बचा नही 
कल से लिखना है 
मन्नू की प्रेम भरी चिट्ठी 
जो, उसने रम्भा के नाम लिखी 
आप भी उसके लव लेटर का अंदाज कीजिये 
तेरे
तेरी रौनक से 
जिंदगी में चमन बहार है 
सनम तेरे होने से 
हमे जिंदगी से प्यार है 
itni 
इतनी अपनी सी क्यों लगती हो 
देखो, उदास मत होना , मेरे बिन तुम 
ये कविताये 
कंहा तक जायेगी 
कंहा तक ले जायेगी 
ये भी तो सोचो 

Friday 3 January 2014

अलसुबह 
अँधेरे में जब छत पर जाकर 
चारों और निहारो तो 
बस तेरा ही चेहरा 
मुस्कराता हुवा नज़र आता है 
क्या  ये भी ईश्वर का 
दीदार है 
हर और हालातों का छाया कोहरा था 
बस एक तेरा चेहरा ही सुनहरा था 
ये मेरे ख्वाबों कि ताबीर 
तेरा हँसता हुवा चेहरा 
और मुस्कराता हुवा कमल 
खिलता हुवा कमल 
दोनों कितने मिलते है 
तू अकेली ही तो है 
एक लजीली गज़ल 

रूप तेरा सुनहरा 
धुप जैसे पत्तल पत्तल 
तेरे लबों कि लाली 
जैसे कि हो सुर्ख मलमल 


रूप तेरा झिलमिल झिलमिल 
कभी तो सामने से आके मिल 
यूँ न परदे में रह 

तेरी रौनक से 
जिंदगी में चमन बहार है 
तेरी मौजूदगी से 
हर पल में निखार है 

bnaras ki byar: कितना मधुर लगा था जब तुमने हंसके मुझे यूँ ही ये...

bnaras ki byar: कितना मधुर लगा था
जब तुमने हंसके
मुझे यूँ ही
ये...
: कितना मधुर लगा था  जब तुमने हंसके  मुझे यूँ ही  ये फूल कहा था  ये फूल यानि कि मुर्ख  वो शब्द कितना प्यारा लगा था  जैसे तुम्हारे अधरों...
कितना मधुर लगा था 
जब तुमने हंसके 
मुझे यूँ ही 
ये फूल कहा था 
ये फूल यानि कि मुर्ख 
वो शब्द कितना प्यारा लगा था 
जैसे तुम्हारे अधरों से 
फूल ही झरे थे 
तब ये लगा था 
कि मई शब्द-भेदी हूँ 
 दिल में बहुत बेचैनी सी रहती है 
ये नही समझ में आता कि 
दिल इतना उतावला सा क्यों रहता है 
कोई इतने बावले दिल के साथ जिए तो 
कैसे जिए , अप ही बताओ 
तुम हो प्यार भरी एक खूबसूरत गज़ल 
ये जान्चमान 
ये जान्चमान 
जान्चमान क्या कृ 
aj 
aj
आज तेरी शरारत ही सही 
कल  चिट्ठी सबको मिलेगी 
ये ये

एक चिट्ठी जो मन्नू ने मरने के पहले 
अपनी प्रेयशी रम्भा के नाम लिखी है 
आपको दिखाऊ 
मन्नू ने लिखा है 

      तुम्हारी 
देखो 
मन्नू की प्रेम भरी कशिश 
अभी नही करना पब्लिश 

  मन्नू ने लिखा है 


 चिट्ठी  

Wednesday 1 January 2014

कितनी प्यारी है 
ये मधुर मुस्कराहट तुम्हारी 
कि , देखते रहे 
पर जी न भरे 
जान 
रहमोकरम 
या तो खुदा का 
या तुम्हारा 
जिंदगी तो 
उसने बखशी है 
पर तुम देती हो 
जीने का सहारा